# Bas Yatra Vratant by Laxmi Tiwari
कुछ मेरी कलम से
Saturday, 11 March 2017
बस यात्रा वृत्तांत
रोडवेज के बस की खिड़की वाली सीट पर बैठे एक और बेहतरीन शाम। वसंत के बाद और ग्रीष्म के पहले के दिनों की ये शामें बचपन से ही मुझे सबसे ज्यादा आनंदित करती रही हैं। और उसपर अगर इन शामों में ग्रामीण परिवेश से रूबरू होने का मौका मिले तो फिर उससे सुखद कल्पना तो शब्दों से परे है। आज एक बार फिर छुट्टी होने पर वही पुरानी गोरखपुर से जौनपुर की यात्रा करने बस में विराजमान हूँ।
बस ग्रामीण परिवेशों से होकर गुजर रही है, खिड़की के बाहर जहां तक दीख पड़ता है हरियाली है, गेंहूँ और अरहर की फसल खड़ी है, कहीं-कहीं खेतों में काम करते ग्रामीण दिख जाया करते हैं, पुरुष,महिला,बच्चे- सभी। मैं मन ही मन उनके अथक परिश्रम के लिए उन्हें प्रणाम करता हूँ। दूर क्षितिज पर सूरज लाल हो चला है, शायद दिन भर की थकान के बाद अब अंतिम सांसें गिन रहा है। खिड़की के बाहर का दृश्य लगातार चलायमान है, बौर से लदे आम के बगीचे मिलते हैं, पानी से लबालब नहरें भी मिलती हैं और धुआं फेंकती ऊंची चिमनियों वाले ईंट के भट्टे भी। अजब-गजब परिवेश दिखते हैं और रह-रह कर आती-जाती स्थानीय बाजारें तो मेरा मन अनायास ही आकर्षित किए रहती हैं। हर बाजार की जमावट व रूपरेखा दूरी के अनुसार बदलती जाती है। जो कुछ आपको ठेकमा और बरदह में दिखाई दे जाएगा वो दोहरीघाट और बड़हलगंज में नहीं होगा, वहाँ विशिष्टता के मायनेे ही बदल जाते हैं। हर स्थानीय बाजार अपनी किसी एक विशिष्ट वस्तु के लिए प्रसिद्ध हुआ करती है। जैसे कौड़ीराम का पेड़ा प्रसिद्ध है तो लाटघाट की चाय, जीयनपुर की बरफी प्रसिद्ध है तो सिपाह का लौंगलता। विभिन्न बाजारों की सामाजिक प्रसिद्धि की वस्तु जानने की मेरी उत्सुकता परस्पर बनी रहती है, और साथी यात्री भी यह ज्ञान देने में पूरा सहयोग करते हैं। इन छोटी-छोटी बाजारों और उनकी मद्धिम रोशनी में खरीददार��