#Gazal by Manju Agnihotri
आप पर आने लगी है ये तबीअत क्या करूँ ,
रोक लेती है मुझे मेरी शराफ़त क्या करूँ !!!!!!
तुम नहीं पहलू में मेरे ख़्वाब-ए-राहत क्या करूँ ,
नींद के दीवार-ओ-दर से मैं मुरव्वत क्या करूँ !!!!!!
इस जहाँ से *ज़ख़्म-ए-फ़ुर्क़त की शिकायत क्या करूँ , (*जुदाई का ज़ख्म )
आज भी दिल पर है उसकी ही हुक़ूमत क्या करूँ !!!!!!
मैंने सर को रख दिया है अब दर-ए-महबूब पर ,
इससे ज्यादा और मैं उस से मुहब्बत क्या करूँ !!!!!!
उनकी उल्फत उनकी चाहत *वस्ल की सब ख्वाहिशें , (*मिलन )
जो मुकद्दर में नहीं मैं उसकी हसरत क्या करूँ !!!!!!
हसरतों की आँधियाँ तो उम्र भर चलती रहीं ,
बे-मुरव्वत ख्वाहिशों की अब वसीयत क्या करूँ !!!!!!
***** ” मंजु अग्नि ” *****