#Gazal by Jasveer Singh Haldhar
लाश दामन में समेटे नेह तर्पण हो गया !
शोर साँसों में लपेटे देह अर्पण हो गया !
आंधीयों में धूल से काफी बचाया था उसे ,
भूख में नाजुक बदन का फिर समर्पण हो गया !
रात नकली रोशनी ने तोड़ डाला आइना,
रोशनी का चाँदनी से गुप्त घर्षण हो गया !
बांध डाली शब्द टोली लेखिनी से छंद में ,
नाद की आवृततियोंका गीत दर्पण हो गया !
बात आयी ध्यान मेरे क्यों न हम भी एक हो ,
सामना सच से हुआ तो द्वंद कर्षण हो गया !
एक ही धरती हमारी एक ही आकाश है ,
आदमी का आदमी से क्यों विकर्षण हो गया !
आ रहे हैं कुछ परिंदे पार से छलने हमें ,
दीप सीमा पर जले तो फौज से रण हो गया !
आज के हालात पर “हलधर “लिखा है तफ़सरा ,
गजल का ये काफिया भी तो विलक्षण हो गया !
हलधर -9897346173
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