#Gazal by Pradeep Mani Tiwari
ग़ज़ल
बह्र-122×3–12
काफ़िया-आम, रदीफ़-हैं
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जली बस्तियां जो सरेआम हैं।
हिमायत करे वो बड़े नाम हैं
उजाले मे जो शान की ज़िन्दगी
बहुत से अँधेरे मे ग़ुमनाम हैं।
लहू आम का अब तलक पी रहे
वही ख़ास बाँकी बचे आम हैं।
पड़े भूल से ख़ास के सामने
मिटेंगे कई मिट गये नाम हैं।
नहीं फर्क अब आम औ ख़ास में
जुटायें सभी मिल सराज़ाम हैं।
मिटीं दूरियां ग़र्ज के सामने
झुके ख़ास”ध्रुव”नेक अंज़ाम हैं।
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शायर प्रदीप ध्रुवभोपाली, म.प्र.