#Gazal by Prahlad soni sagar
अगर आइना जो नहीं होता घर में!
कहाँ से मचलती ये कलियाँ शहर में!!
छलकते नहीं जाम मदमस्त होकर!
निकलती न ग़ज़ले रुहानी बहर में!!
हवाएं न चलती न चढ़ती घटाएं!
बरसती न बारिश न छुपते शजर में!!
रुमानी मुहब्बत नहीं रोती पल पल!
नहीं होती मृत्यू किसी भी जहर में!!
नहीं राग होती नहीं द्वेष होता!
नहीं जान होती खुदा के कहर में!!
बड़े खूबसूरत सहज रूप होते!
नहीं होती ईर्ष्या किसी भी नज़र में!!
कहे आज सागर मुकम्मल न होता!
नहीं आज कश्ती मचलती लहर में!!
प्रहलाद सागर
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