#Gazal by Shanti swaroop Mishra
अभी से थक गए तुम तो, अभी तो सफर बाक़ी है
जाने कितनी साजिशों का, अभी तो कहर बाक़ी है
ज़रा सी छांव क्या मिली तुम तो भूल गए सब कुछ,
अब तक तो रस्ते सहज थे, ख़तरों की डगर बाक़ी है
उलझे हुए हो व्यर्थ में तो कैसे मिलेगी मंज़िल तुम्हें,
अभी तो बस ये खेल था, अभी असली समर बाक़ी है
किसी और के हाथों में न सौंपिये अपनी किस्मत को,
बदल सकती हैं लकीरें भी, गर हाथों में असर बाक़ी है
खुदगर्ज़ दुनिया में मदद की गुहार मत कीजे “मिश्र”,
तुम्हें तो पीना पड़ेगा खुद ही, जितना भी ज़हर बाक़ी है
शांती स्वरूप मिश्र