ग़ज़ल ~~
कलयुगी राम दीन है भाई।
काम की वो मशीन है भाई।
धर्म का ग़र्क़ हो रहा बेड़ा,
पाप इतना हसीन है भाई।
पारखी-सी अदा रही उसकी,
आँख़ भी दूरबीन है भाई।
जो जहाँ देख ले, वहीं डूबे,
रूप इतना महीन है भाई।
आज की राजनीति में देखो,
आदमी रंगहीन है भाई।
-विनोद सागर
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