#Geet by Mukesh Bohara Aman
नवगीत
मानवता की आग
आओ खोजे, ढूंढ़े मिलकर,
मानवता की आग जरा ।
वह कैसा दिल,
जिसमें नही है
प्रीत नाम भर
सच में नही है
मुश्किल से मिल पाता मानव
मानव से अनुराग जरा ।
रिश्तों का ,
अपनापन, मोहब्बत ,
कहां गई अब,
सत् की सौहबत ,
आओ गा लें दिलभर बिछड़ी,
मोहब्बत की मन फाग जरा ।
रिश्तों का हर,
बंधन टूटा ,
अब लगता ,
अनुशासन झूठा ,
चलो बचाएं नीड़ पुराने ,
सिर का पानी पाग जरा ।
मुकेश बोहरा ‘अमन’ नवगीतकार
बाड़मेर राजस्थान 804123345