#Kavita by Arun Kumar Arya
कैसी आज़ादी
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कौन कूद पड़े थे रण में लड़ने को
कौन लोग फाँसी के फन्दे चूमे थे
कौन कितनी यातनाएँ सहे यहाँ
कौन बाँध कफन सिर पर घूमे थे
किन माताओं के हुए थे गोद सुने
किन बहनों की राखी बँध न सकी
कौन रह गये बच्चे अनाथ बन यहाँ
किसकी पाँव देश हित रुक न सकी।
थे माता पिता पूज्य महान देश के वे
बहने थी उनकी माँ भारत की प्यारी
अनाथ बच्चे भटके उनके यहाँ वहाँ
है विचित्र कहानी उनकी बहुत न्यारी
स्वतंत्रता के लिए जिन्होंने दी आहुति
परिवार उनके दर दर भटक रहे हैं
राजसत्ता का भोग मिला उन लोगों को
जो आज देश प्रेमियों को खटक रहे हैं
वो क्या जाने आज़ादी की क़ीमत
कब उन्हें देश विकास की चाह रही
सत्ता हथियाने की सोच गन्दी उनकी
देशवासियों की कब उन्हें परवाह रही
भारत ये लाल कब तेरा उत्थान करेंगे
कब स्वार्थ भूल जन का सम्मान करेंगें
कब ये अपनी वाणी का मान रखेंगे
या तेरे गोद में बैठ तेरा ही गला रेतेंगे
बहुत बहुत दिलासा दे रहें कब से
कब तक हम उनके झाँसे में फँसेंगे
उठ रहे चारों तरफ़ विद्रोह के स्वर
कब तक ये लोगों का उपहास करेंगे
कब विरुद्ध इनके भगत के बम फूटेंगे
कब बिस्मिल बन इनका धन लूटेंगे
कब अरविंद हो इनके विरुद्ध लड़ेंगे
कब श्रद्धानन्द सामने सीना तान बढ़ेंगे
यह कैसी आज़ादी मिली हम सबको
भीषण आग चारों तरफ़ लगी हुई है
आर्य” सुधारो अपने को राष्ट्र नायकों
भारती की आँखें तुम पर टिकी हुई है
अरुण कुमार आर्य
प्रधान आर्य समाज मन्दिर
मुगल सराय, चन्दौली।