#Kavita by Babita Chaubey
चिरैया
आंगन की मैं स्वर्ण चिरैया घर घर में मै रहती हूँ
कहीं बहू कहीं हूँ बेटी हर आंगन को महकाती हूँ !!
कहीं अहिल्या पाथर बन जाती कहीं शबरी बन जाती हूँ
कहीं सिया बन वन वन जाती पति ब्रत धर्म निभाती हूँ !!
कहीं कौशल्या बन जाती और राम धरा पर लाती हूँ
कहीं देवकी यशुमति बनके माखन कृष्ण चखाती हूँ !!
मैं भारत की नारी हूँ हाँ गंगा, गायत्री, तुलसी हूँ
कहीं रचाती रामायण तो हुलसी मैं बन जाती हूँ !!
मैं बहाती हूँ प्रेम सरोबर, ममता का मैं सागर हूँ
कहीं बन राधा प्रेम की गागर , जीवन भर छलकाती हूँ !!
मैं भक्ति हूँ , मैं शक्ति हूँ मैं ही आदि अंत का कारण हूँ
मैं सृष्टि हूं मैं वृष्टि हूं धरा की प्यास बुझाती हूं !!
मैं भारत की सोन चिरैया गीत मधुर मै गाती हूँ
कभी लोरी कभी राधा मीरा प्रेम गीत को गाती हूँ !!
बबिता चौबे शक्ति