kavita by sanjay verma drushti
पिता
पिता मील पत्थर
जो ,सचाई की राह बताते
पिता पहाड़
जो ,जिंदगी के उतार-चढ़ाव समझाते
पिता जोहरी
जो ,शिक्षा के हीरे तराशते
पिता दीवार
जो ,अपने पर भ्रूण -हत्या पाप लिखवाते
पिता पिंजरा
जो ,रिश्तों को जीवन भर पालते
पिता भगवान
जो ,पत्थर तराश पूजे जाते
पिता सूरज
जो ,देते यादों के उजाले
पिता हाथ
जो ,देते सदा शुभ आशीष
पिता दुआएँ
जो ,बिन उनके अब साथ मेरें
पिता आँसूं
जो ,अब मेरी आँखों में है बसे