#Kavita by Sushila Joshi
: परिचय
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नाम सुशीला जोशी
पिता स्व काशीनाथ शर्मा
माता स्व रामकली देवी
पति डा आर डी जोशी
मेरी शिक्षा M A हिंदी , अंग्रेजी , बी एड , संगीत प्रभाकर – गायन , तबला , सितार , कथक
व्यवसाय अंग्रेजी माध्यम , आवासीय पब्लिक स्कूलों में शिक्षण व प्राचार्या ।
प्रकाशन तीन काव्य संग्रह , एक कहानी संग्रह , एक आत्मकथा
सम्मान अनेक पुरस्कारों के साथ हिंदी साहित्य संस्थान लखनऊ से ” अज्ञेय ” पुरस्कार
पता सुशीला जोशी , 948/ 3 योगेन्द्र पूरी , रामपुरम गेट , मेरठ रोड , मुजफ्फरनगर 251001
# नदी #
नयी षोडशी की भांति तुम
लचक लचक चलती सुकुमार
लज्जा में तुम सिमट सिमट कर
प्रकट किया करती आभार ।
मुक्त केश सी जलराशी भी
हवा गुदगुदाए तव उर को
कम्पन से तब दोलित हो कर
लहर सजाती तव पुर को ।
रवि किरणों में देह लपेटे
देती जीवन सारे जग को
तेरी सुंदरता का उजास भी
उज्ज्वल करते सारे मग को ।
तट प्रेमी से लिपट लिपट कर
सस्मित आगे बढ़ती हो तुम
दूर देश की कथा वार्ता
अंजानी सी पढ़ती हो तुम ।
अपना हास दिखाने के हित
हर पल कल कल करती रहती
दुगुना तिगुना करने हेतु
निरत भाव ले बहती रहती ।
अनब्याही सुकुमारी हो कर
अल्हड़ बाला सी दिखती हो
मैदानों खेतो में आ कर
बचपन के संग संग फिरती हो ।
जीवन की बाधा को तुमने
भुला सभी पथ पार किये
ऊँच नीच जीवन के हिस्से
आखिर तुमने मान लिये ।
गिरी क्षेत्र में रहा सुरक्षित
तेरा वो कौमार्य स्वरूप
आत्मसमर्पण करने पर तो
गदला बना और हुआ कुरूप ।
जब तक थी सुकुमार पवित्रा
तब तक तुमको था पूजा
कोई परिचय आज नही है
कल था जो अब है दूजा ।
बरबस फुट पड़े वाणी से
भाव तुम्हारे अचल खड़े
सम्पन्नता की अरुणिमा में
हृदयोद्गार भी मचल पड़े ।
दशो दिशाओ में टँकारा
तेरे जयघोष का वर्तन
प्यास धरा की हरने के हित
रोज किया करती हो नर्तन । – – – –सुशीला जोशी