#Kavita by Dr Prakhar Dixit
दर्द
जरा सा दर्द क्या छलका तमाशा तुम बना बैठे।
न समझा मोल अश्कों का फसाना तुम बना बैठे।।
मैं दिल से हूँ तुम्हारी ही ये गवाही दे रहीं आहें
समझ उल्फत को दर्दे दिल निशाना तुम बना बैठे।।
बिछी पलकें जिया व्याकुल तुम्हारी याद में गाफिल।
क्यों गए मुँह मोड़ हमसे क्या नहीँ हम प्यार के क़ाबिल।।
यक़ीं तुम लौट आओगे सजन मैं याद में ज़िंदा ,
तुम्हारी मैं मेरे हो तुम प्रखर किरदार तुममें शामिल।।
प्रखर
फर्रूखाबाद