#Kavita by Jeetu musafir
अब कहाँ बनते हैं संगमरमर के ताज़महल ,
जब से आ गए हैं रंग बिरंगे मारबल ।
अब तो पहचान जाते हैं उन्हें रिंगटोन से ही ,
ना चमकती है बिंदिया ना खनकती हैं पायल ।
ना छाती है घटा ज़ुल्फो की ना नैनो के तीर चलते हैं ,
जींस लेंगिस और मिनिज देखते ही हो जाते हैं घायल ।
प्यार की चिठ्ठियां भी अब नही पहुँचती डाकखाने ,
इंटरनेट और मोबाइल ने दिये है इज़हारे बयां बदल ।
एलु जैसे शोर्ट शब्दों से रिश्ते हो गये है शार्ट टर्म ,
ढूंढते रहते हैं प्यार भरे गीत शायरी ओर गज़ल ।
आज इससे कल उससे परसो किससे मिलेंगी नजर ,
वफ़ा और ईमान के मायने अब हो गये है फाजल ।
जीतू मुसाफिर ।
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