#Kavita by Kavi Sharad Ajmera Vakil
*”कठुआ” कांड पर कुछ कहना चाहा है .अच्छा लगे तो शेयर करें …..
जागता क्यों बार-बार तुममें ये शैतान.
इंसान होकर भी क्यों बन जाते हैवान..
कुत्सित इरादे तुम्हारे क्यों फन फैलाते.
राम से मर्यादित तुम रह क्यों नहीं पाते..
नरभक्षी,दुर्योधन,कंस,रावण भी शर्मिंदा हैं.
तुमसे बलात्कारी राक्षस क्यों जिन्दा हैं..
नव पल्लवित कलियों से करते अनाचार.
क्यों मचा रही वासना तुममें इतना हाहाकार..
हत्यारों को जात पात में मत बांटो तुम.
अस्मत की कीमत पर वोट मत काटो तुम..
सोया हुआ स्वाभिमान जिस दिन जाग जायेगा.
प्रजा का आत्मसम्मान जब जाग जायेगा..
आसमान में उड़ रहे तुम वोटो के जोर से.
जूं रेंगती नहीं आम जनता के दर्दीले शौर से ..
वक्त की पुकार है अभी भी सम्हल जाओ तुम.
प्रजा के रक्षक हो प्रजा के काम आओ तुम ..
**””वकील””**
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