#Kavita by Rajendra Bahuguna
जियो – मोबाइल
मोबाइल तो ठीक है माना, नेट के काबिल अभी नही है
प्रतिशत में कुछ ज्ञानी होगे, इतने ज्ञानी सभी नही है
ये शिक्षा में भी उपयोगी है,पर पथ से भी भटकता हैं
जिसका कोई काम नही है,उसका भी नेट से नाता हैं
अच्छा होता योग्य पात्र को केवल नेट उपयोग कराते
इस उपयेगी यन्त्र-तन्त्र का ज्ञान शहर,गांवो में लाते
फिर धीरे-धीरे पूरा भारत तकनीकी का लाभ उठाता
पूरा भारत तकनीकी के राष्ट्र-गीत घर-घर में गाता
शिक्षा की हालत पतली है समाचार सब बोल रहे हैं
बे-रोजगारी युवा-शक्ति की पोल बराबर खोल रहे हैं
बडे-बडे डिप्लोमा लेकर यंहा पढे लिखे सब भटक रहे है
यंहा मध्य-वर्ग की शक्ले देखो सबके चेहरे लटक रहे है
मोबाइल तो धनवानो के बच्चों का ही मनोरञ्जन हेै
अब केवल आवारागर्दी की फितर का ही ये व्यञ्जन है
यंहा आज गरीबी मजबूरी है पर मोबाइल की गुञ्जन है
डेढ अरब की इन भीडों का क्या अम्बानी दुख भन्जन है
हिन्दू, मुस्लिम ,सिक्ख ,इसाई परम्परा में हम जीते हैं
संस्कारो के फटे लिबासो को ही तो हम सब सीते हैं
यहां पुरातत्व के अवशेषों को छान-छान कर हम पीते हैं
जांच करालो इस तकनीकी दुनिया में हम गये-बीते हैं
सब देश के बच्चे रात-रात भर चैटिंग में ही लगे हुये हैं
जब पूरा भारत सो जाता है, केवल ये बच्चे जगे हुये हैं
मजबूर हुआ विक्षिप्त है बच्चा मजबूरी में जाग रहा है
भविष्य राष्ट्र का लक्ष्यहीन होकर सडकों पर भाग रहा है
यहां पूरण-मासी ,ईद चाँद को देख-देख कर हम जीते हैं
इस युग में भी पञ्च-द्रव्य का चरणामृत हम सब पीते हैं
यहां आधा जीवन बे-मतलब के उपवासों से भरा पडा है
फिर भी नंगे-भूखों का जीवन मोबाइल से खरा खडा है
अब इस डीजिटल इण्डिया के सागर में नंगे भी तैर रहे हैं
इस भारत में तो व्यभिचारी के सदा व्योंम पर पैर रहे है
क्यों युवा पीढीयों में अम्बानी कामुकता को बांट रहै हैं
यहां इन्द्रदेव भी अब मोबाइल में रम्भाओं को छांट रहे हैं
व्यवसायी दुनिया के मालिक को भारत का पता नही है
यंहा परम्पराये भटक गयी है,किसी की कोई खता नही है
धन-वैभवता ही भारत के इन संस्कारो को तोड रही है
कवि आग की कविता केवल भ्रम की हांडी फोड रही है
राजेन्द्र प्रसाद बहुगुणा(आग)
9897399815