Kavita #Kavita by Ramesh Raj August 8, 2018 Admin 0 Comments कुंडलिया छंद बेचारी नारी बनी हारी-हारी हीर प्रेम नहीं अब रेप है बस उसकी तकदीर , बस उसकी तकदीर, नीर नित नीरज नैना अब पिंजरे के बीच सिसकती रहती मैना | सुन रमेश हर ओर खड़े कामी व्यभिचारी इनसे बचकर किधर जाय नारी बेचारी || || रमेशराज ||