#Kavita by Subodh Srivastava
शायद
——
सच में
दूर कहां जा पाता है
किसी से
एकाएक हाथ छुड़ाके
नज़रों से ओझल हो जाने वाला..!
याद है मुझे
आंगन में-
खुशी से चहचहाती
गौरैया
नन्हें बच्चों के संग
सब कुछ भूल जाती थी
शायद!
बच्चों ने जीभर कर
दाना चुगा उससे,
नीले आकाश में
पीगें भरना भी सीखा
फिर, एक रोज
न जाने क्यों
देर शाम तक
नहीं लौटे वे।
गौरैया-
अब कहीं नहीं जाती
और
आंगन को भरोसा है कि
बच्चे
फिर आएंगे/लौटकर
चहकेंगे चिड़िया के संग!
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