#Kavita by Vidhya Shankar Vidhyarthi
कविता
दीवार
वर्षों से
खाली
दीवार ढूँढ़ रहा हूँ
नयी दीवार बनती है
प्रतिमाह
भर जाती है वह – सीमेंट, छड़,
और बनियान के विज्ञापन से
पुरानी
दीवार भी
कहीं खाली नहीं मिलती |
सोचता हूँ
मुझे कब कहाँ और कैसे मिलेगी
खाली दीवार
दर्द भरी रोटी की उभरती
आवाज के लिए
जिस पर उग उठती
भूखे की भूख
भूख की आवाज
भूख की रोटी
पेट
पेट की आग
ढंढ
ढंढ की चादर
चाँदनी
चाँदनी की टीस
दोपहर
दोपहर की कड़कती धूप
शीशे
शीशे की खिड़कियाँ से झांकते
लोग
धूप में
पसीना बहाते लोग
पढ़ी जाती सच्चाई
मधुबनी पेंटिंग कला भी उभारती
यथार्थ
अभिव्यक्ति की
माध्यम
बनती दीवार |
विद्या शंकर विद्यार्थी
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