#Shayari by Akash Khangar
रात रो कर बिताऊँ या सो कर क्या फर्क पड़ता है
तू छोड़ दे मेरी फिकर ऐ खुदा
चलने दे युही जब तक ये सिलसिला चलता है…
***
जो कहते है बड़े उसे मान ले
प्रश्नो की बेमतलब झड़ी न लगा
शब्द उनके नही तजुर्बा है ये
व्यर्थ की बहस में न खुद को बहका
दोष मढ़ने चले हो तो किसी को न छोड़ोगे
अच्छा है खुद कर मंथन ज्ञान का
ज्ञान अर्जन कर इन सीखो के साथ
न सयानो की बातो पर तोहमत लगा…
***
मेरी खामोशियो की जुबा नही ऐसा तो नही
मैं भी हूँ इंसान खुदा तो नही
न इतना सितम करो के मिट ही जाऊँ मैं
मैं भी तुममें से ही एक हूँ
कोई फरिस्ता तो नही…
***
382 Total Views 3 Views Today